विष्णुधर्मोत्तर पुराण और कला भारत में चित्रकला का एक प्राचीन स्रोत विष्णुधर्मोत्तर पुराण है। विष्णुधर्मोत्तर पुराण मार्कण्डेय द्वारा रचित है। इसमें लगभग १६ हजार श्लोक हैं जिनका संकलन ६५० ई. के आस-पास हुआ। इसके तीन खण्ड हैं। प्रथम खण्ड में २६९ अध्याय हैं, द्वितीय खण्ड में १८३ अध्याय तथा तृतीय खण्ड में ११८ अध्याय हैं। विष्णुधर्मोत्तर पुराण के 'चित्रसूत्र' नामक अध्याय में चित्रकला का महत्त्व इन शब्दों में बताया गया है- कलानां प्रवरं चित्रम् धर्मार्थ काम मोक्षादं। मांगल्य प्रथम् दोतद् गृहे यत्र प्रतिष्ठितम् ॥ कलाओं में चित्रकला सबसे ऊँची है जिसमें धर्म, अर्थ, काम एवम् मोक्ष की प्राप्ति होती है। अतः जिस घर में चित्रों की प्रतिष्ठा अधिक रहती है, वहाँ सदा मंगल की उपस्थिति मानी गई है। विष्णुधर्मोत्तर पुराण एक उपपुराण है। इसकी प्रकृति विश्वकोशीय है। कलाओं के अतिरिक्त इसमें ब्रह्माण्ड, भूगोल, खगोलशास्त्र, ज्योतिष, काल-विभाजन, कुपित ग्रहों एवं नक्षत्रों को शान्त करना, प्रथाएँ, तपस्या, वैष्णवों क
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