वर्तमान के बच्चों को कला से जोड़ने की आवश्यकता पर चर्चा

 वर्तमान के बच्चों को कला से जोड़ने की आवश्यकता पर चर्चा :

परिचय :

कलाकार का शाब्दिक अर्थ ही है कल को आकर देने वाला, तो जो कलाकार कल थे उन्होंने हमारे आज के युग का निर्माण किया और आज का कलाकार कल का निर्माण कर रहा है ऐसे में भविष्य की जब हम बात करते हैं तो आज जो हमारी नवीन फसल है यानी आज के युग के बच्चे, जो आने वाली पीढ़ी के भविष्य निर्माण की क्षमता रखेंगे, उन्हें आज कला से व विशेष रूप से कला के सवेंदनात्मक पहलु से जोड़ना बहुत आवश्यक है।  



आवश्यकता के कारण :

आधुनिक समाज बहुत तेजी से विकास कर रहा है और जब सामान्य भाषा में हम विकास की बात करते हैं  तो उससे हमारा तात्पर्य भौतिक विकास से होता है, इसमें कोई आपत्ति नहीं है कि भौतिक विकास आज के समाज की आवश्यकता है परन्तु जितनी तेजी से यह भौतिक विकास अपने पैर फैला रहा है उतनी ही तेजी से समाज में मानसिक असंतुलन की स्थिति बढ़ रही है और इस स्थिति को विकास नहीं कहा जा सकता। मन्तव्य यह है कि आर्थिक, मानसिक और आध्यात्मिक उन्नति ही वास्तविकता में किसी भी समाज की वास्तविक उन्नति का द्योतक है। और एक स्वस्थ समाज के निर्माण में कला विशेष रूप से महत्वपूर्ण इकाई के रूप में कार्य करती है। 

कला का योगदान :

विकास की दृष्टि से:

क्योंकि यदि हम विकास की बात नहीं करते तो समाज उस विषय के महत्व को स्वीकार नहीं करेगा इसलिए पहले हम एक विकसित समाज के योगदान में कला की जो भूमिका है उस पर चर्चा करेंगे। 

क्या आपको याद है कि पैराशूट के निर्माण से पहले उसका स्केच लिओनार्डो विन्ची के द्वारा बनाया गया था और लगभग 400 वर्ष बाद उसका निर्माण हुआ था।  कलाकार की चेतना कितना समय से आगे देख सकती है यह इसका उदाहरण है और यही नहीं युध्द के अस्त्र शस्त्र एवं टेंकर, फोटोग्राफी मशीने , एक्सरे मशीन ,  ध्वनि व प्रकाश आदि भी चेतना के स्तर पर पूर्व में एक कलाकार के द्वारा ही विकसित की गई थीं। हाँ यहाँ आपका योगदान करने का मंतव्य आपको इस ऊंचाई तक ले जाता है और यह मंतव्य किस प्रकार प्राप्त होगा इस पर भी हम आगे बात करेंगे। 

स्वस्थ समाज के निर्माण की दृष्टि से :

स्वास्थ का अर्थ शारीरिक और मानसिक दोनों से होता है।  और यह तो आप भी जानते ही हैं कि यदि मन स्वस्थ है तो वह शारीरिक स्वास्थ में भी सहयोगी होता है अथवा तो उसको झेलने की सामर्थ्य प्रदान करता है।  आप पूर्ण स्वस्थ हैं और सब कुछ है आपके पास किन्तु आपका मन ठीक नहीं तो सब व्यर्थ ही लगता है। 

कला अवचेतन मन को तरंगायित करके आपको कुछ ऐसी मेडिटेटिव स्थिति में रखती है कि धीरे धीरे आपका द्रष्टा भाव जाग्रत होता है। हाँ पुनः यह भी एक साधना है इसके लिए आप जब अपनी ही कला से भिन्न होकर उसमें अंतर्दृष्टि की रचना करते हैं तो जैसे कि प्रसिद्ध मनोविश्लेषक सिग्मंड फ्रायड ने कला को अवचेतन मन की व्याख्या के रूप व्यक्त किया है उस अवचेतन मन की यात्रा तक पहुँच पाते हैं। तो कला व्यग्तिगत रूप से मानसिक विकास एवं स्वास्थ पर कार्य तो करती ही है साथ ही उसका योगदान समाज के लिए भी होता है इसे हम अगले शीर्षक में पढ़ते हैं। 

संवेदनशील समाज का निर्माण :

कला आज के भौतिक युग की नाव को चलाने व संभालने के लिए चप्पू (rower ) के समान है।  कला की तरेंगे समाज को एक दूसरे के प्रति संवेदनशील बनाती है - इसके विविध प्रक्रियाविद एवं वैज्ञानिक कारण भी हैं, प्रक्रियाविद कारण बहुत विस्तृत एवं अनुभूतिपूर्ण हैं , उसके विषय में बस इतना ही कहा जा सकता है कि चाहे आप फ्रांसिस्को गोया की अत्यधिक अप्रासंगिक विचित्र पेंटिंग देखें या कि साल्वाडोर डाली या कॉन्डेंस्की या हेनरी मातिस की, या भारतिय कलाकारों में यामिनी रॉय, रविंद्रनाथ टैगोर या कि राजा रवि वर्मा को भी ले सकते हैं, जब हम इनकी पेंटिंग देखते हैं,  तो एक प्रक्रिया को पाते हैं जो कि अंतर्यात्रा को भी महसूस कराती है और यही कारण है कि इन कलाकारों के व्यक्तिगत जीवन ही नहीं बल्कि आज तक उनके कार्य समाज को संवेदित कर रहे हैं। 

वैज्ञानिक कारण :

प्रत्येक वस्तु अणु और एनर्जी ये दो भाग रखती है, उसमें कला में प्रयोग किये गए रंग वास्तविकता में धैर्य तरंगे होती हैं फिर कलाकार की मानसिक स्थिति फिर उस चित्र के उध्दरण एवं रेखाएं सब मिलकर एक एनर्जी का पिंड तैयार करते हैं , इसलिए विष्णुधर्मोत्तर पुराण में कला के लिए कहा गया है कि ये जहां रहती हैं वहां मंगल करती है इस विषय को आप विस्तार से मेरे पूर्व के ब्लॉग में देख सकते हैं। 

निष्कर्ष :

हम अक्सर कलाकार की जीवन यात्रा में आने वाली आर्थिक परेशानियों के कारण नई पीढ़ी को कलाकार न बनने की सलाह देते हैं, यहां आधुनिक डिजिटल मीडिया आदि अनेक तरीके हैं जिससे आप आधुनिक समाज में अपने जीवन यापन के योग्य हो सकते हैं पर कलाकार का जीवन यदि एक सच्चे साधू की तरह हो तो ही वह समाज के लिए व स्वयं के लिए भी एक आदर्श बन सकता है और इसकी आवश्यकता भविष्य का मनुष्य संवेदनाहीन मशीन न बन जाए इसके लिए भी है।  यहाँ मुख्य रूप से मैने विज़ुअल आर्ट पर ही चर्चा की लेकिन कला शब्द बड़ा है व अन्य सभी विधाओं का भी बहुत महत्व है लेकिन वह पूर्ण रूपेण मेरे अनुभव का विषय अभी तक नहीं बन पाया है इसलिए समाज में बच्चों को कला से जोड़ने की आवश्यकता को लेकर कुछ चर्चा यहां की गई  है। 

इस लेख पर आप सभी के विचारों का स्वागत है।  

👉क्या ये ब्लॉग किसी भी प्रकार से आपके लिए सहायक है या आपके सुझाव इस विषय में क्या हैं  ... और आप आगे किन विषयों पर ब्लॉग पढ़ना चाहते हैं  ... कृपया अपने महत्वपूर्ण सुझाव दीजिये 🙏


Comments

search this blog

षडंग (six limbs): चित्रकला का आधार

पाल चित्रकला शैली

विष्णुधर्मोत्तर पुराण और कला

जैनशैली/अपभ्रंश शैली

पहाड़ी शैली

राजस्थानी शैली/राजपूत शैली