बंगाल स्कूल ऑफ आर्ट के प्रमुख चित्रकार भाग -3

 

बंगाल स्कूल ऑफ आर्ट के प्रमुख चित्रकार 

   भाग -3



संत चित्रकार क्षितिंद्रनाथ मजूमदार -




जब राष्ट्रवाद आंदोलन अपने चरम पर था, बंगाल के कलाकारों ने अबनिंद्रनाथ टैगोर के संरक्षण में भारतीय कला के पुनर्जागरण की दिशा में काम किया। टैगोर ने महसूस किया कि यूरोपीय शैली और माध्यम भारतीय मुहावरों और कलात्मक अभिव्यक्ति के तरीकों पर कब्जा कर रहे थे तब ऐसे में  पूर्व  और भारत के भीतर से प्रेरणा लेकर बंगाल स्कूल के कलाकारों ने अपनी नई पहचान बनाई। ऐसे ही एक कलाकार थे क्षितिंद्रनाथ मजूमदार।

मजूमदार का जन्म 31 जुलाई 1891 को शहरी कोलकाता से दूर मुर्शिदाबाद के एक गाँव जगती  में हुआ था, जहाँ उन्होंने बाद में अपना अधिकांश जीवन बिताया। उनके पिता केदारनाथ मजूमदार ने अकेले ही उनका पालन-पोषण किया क्योंकि जब वे बहुत छोटे थे उनकी माँ का निधन हो गया था । एक किशोर के रूप में, उन्होंने अपने पिता के स्वामित्व वाले एक स्थानीय थिएटर समूह में अभिनय किया। उनकी कलात्मक क्षमताओं को पास के एक गांव निमतिता के जमींदार ने पहचाना। उनके परामर्श पर, मजूमदार ने 1905 में कोलकाता के गवर्नमेंट आर्ट कॉलेज में प्रवेश लिया।

मजूमदार के चित्रों में आध्यात्मिकता का सुंदर समामेलन है। वह वैष्णववाद के दायरे से मुग्ध थे और उनके बहुत सारे चित्र वैष्णव देवी-देवताओं और संतों के विषयों पर आधारित थे। क्षितिंद्रनाथ मजूमदार ही ऐसे कलाकार थे जिन्होंने  वैष्णो सम्प्रदाय से सम्बंधित चित्रों को बनाने में अपना पूरा जीवन निकाल दिया।   नेशनल गैलरी ऑफ़ मॉडर्न आर्ट (NGMA) नई दिल्ली में उपस्थित  इस  चित्र पर एक नज़र डालें - 




                                                                               लक्ष्मी 

उनके चेहरे की अभिव्यक्ति और निरंतर भौहें अजंता की गुफाओं से बोधिसत्व पद्मपाणि की याद दिलाती हैं।

उन्होंने वाश तकनीक में ज्यादातर चित्र बनाये। मजूमदार ने खुद उल्लेख किया कि उन्होंने ड्राइंग को अत्यधिक महत्व दिया क्योंकि यह किसी भी कलाकृति का कंकाल है।  कलाकार ने बारीक रेखाओं, आभूषणों, फूलों, अलंकरणों आदि जैसे विवरणों को खींचने के लिए तड़के का इस्तेमाल किया। संदर्भ में चित्र आकार में छोटे थे, जो मुगलों की लघु परंपराओं के समान थे। अतिरिक्त समय में वे अवनींद्र को भजन सुनाया करते थे और शिक्षा पूरी होने के बाद उन्हें इंडियन सोसाइटी ऑफ़ ओरियंटल आर्ट में शिक्षक नियुक्त किया गया। कोलकाता रहकर भी वे कभी शहरी रंग ढंग में स्याम को नहीं ढाल पाए और  ग्रामीण संस्कृति सदैव उनकी कल्पना में छाई रही। 

इनके प्रसिद्ध चित्र चैतन्य सीरीज , यमुना , लक्ष्मी , गीत गोविन्द, मीरा , राधा का अभिसार , पालित मृग , ध्रुव की तपस्या , गुरु के द्वार पर लक्ष्मी  व् अभिसारिका हैं। 

9 फरवरी 1975 को अनवरत कला साधना करते हुए उन्होंने शरीर छोड़कर -अपनी अंतिम यात्रा प्रयाग से आरम्भ की। 

कवी कलाकार असित कुमार हाल्दार-





कवी कलाकार के रूप में जाने जाने वाले एवं बंगाल स्कूल प्रमुखतम कलाकारों में से एक - असित कुमार हाल्दार का जन्म पश्चिम बंगाल कोलकाता  में 10 सितम्बर 1890 को हुआ था । वे कल्पनाशील, भाव-प्रवण आधुनिक चित्रकार होने के साथ-साथ एक अच्छे साहित्यकार, शिल्पकार, कला समालोचक, चिन्तक, कवि, विचारक तथा मित्र दृष्टिकोण वाले दक्ष कला शिक्षक एवं संयोजक थे। उन्होंने 14 साल की उम्र में अपनी पढ़ाई शुरू की। उनकी शिक्षा गवर्नमेंट स्कूल ऑफ आर्ट, कलकत्ता में  1904 में शुरू हुई। हलदार ने 1905 में दो प्रसिद्ध बंगाली कलाकारों- जादू पाल और बक्केश्वर पाल से मूर्तिकला सीखी और उन्होंने लियोनार्ड जेनिंग्स से भी सीखा। 

1909 से 1911 तक वे अजंता में भित्तिचित्रों पर चित्रों का दस्तावेजीकरण कर रहे थे। उन्होंने लेडी हेरिंगम के साथ एक अभियान पर और दो अन्य बंगाली चित्रकारों के साथ मिलकर ऐसा किया, जिसका उद्देश्य व्यापक भारतीय दर्शकों के लिए गुफा कला को लाना था। 1914  में जोगीमारा गुफा और फिर 1921 में,  बाग गुफाओं के चित्रों की प्रतियां तैयार कीं और व उनके इन प्रतिबिंबों से अतियथार्थवादी चित्रणों का संकेत मिलता है। 

1911 से 1915 तक वे शांतिनिकेतन में एक कला शिक्षक थे।  वे 1911 से 1923 तक कला भवन स्कूल के प्राचार्य भी रहे, उन्होंने सांस्कृतिक और कलात्मक गतिविधियों में टैगोर की सहायता की। इस समय के दौरान, उन्होंने छात्रों को कला के लिए कई अलग-अलग शैलियों का परिचय दिया, और वहां सजावटी और औपचारिक प्रदर्शनों में क्रांति ला दी।

1923 में, वह इंग्लैंड, फ्रांस और जर्मनी के एक अध्ययन दौरे पर गए। अपनी वापसी पर, वे महाराजा स्कूल ऑफ आर्ट्स एंड क्राफ्ट्स, जयपुर के प्रिंसिपल बने, जहां वे एक वर्ष तक रहे, इसके बाद वे वर्ष 1925 में लखनऊ के गवर्नमेंट स्कूल ऑफ आर्ट्स एंड क्राफ्ट्स में प्रिंसिपल के रूप में चले गए और 1945 तक काम किया।

1923 में हलदार ने यूरोप का दौरा किया और जल्द ही महसूस किया कि यूरोपीय कला में यथार्थवाद की कई सीमाएँ हैं। उन्होंने भौतिक गुणों को विषय वस्तु के परिमाण के अनुपात में संतुलित करने की मांग की। हलदर की यशोदा और कृष्ण केवल एक धार्मिक पेंटिंग नहीं थी बल्कि अनंत का एक कलात्मक जुड़ाव था (कृष्ण द्वारा परिमित (यशोदा द्वारा प्रतिनिधित्व) के साथ प्रतिनिधित्व किया गया था। हलदर ने बुद्ध के जीवन पर बत्तीस पेंटिंग और भारतीय इतिहास पर तीस पेंटिंग भी बनाईं । उनकी कला में आदर्शवाद।  उनके मीडिया में शामिल थे -  लोह,  तेल, जल रंग, और यहां तक ​​कि कुछ फोटोग्राफी तक उनकी उत्कृष्ट कृतियों में शामिल हैं -

कृष्ण और यशोदा

भारत माता का जागरण

राय-राजा कमल

कुणाल और अशोक

रासलीला

संगीत की लौ

प्रणाम

हलदार  एक कवि भी थे। उन्होंने कालिदास के मेघदूत  और ऋतुसंहार का संस्कृत से बंगाली में अनुवाद किया। उन्होंने दृश्य कला में कई कविताओं का भी चित्रण किया, जिनमें उमर खय्याम की बारह कविताएँ भी शामिल हैं। वह बंगाली में विभिन्न पुस्तकों के लेखक भी हैं जैसे - अजंता (अजंता की गुफाओं का एक यात्रा वृत्तांत), हो-डेर गैल्पो (हो जनजाति का जीवन और संस्कृति), बाग गुफा और रामगढ़ (मध्य भारत में बाग गुफा और रामगढ़ का एक और यात्रा वृत्तांत आदि ।उनकी मृत्यु- 13 फ़रवरी 1964 को हुई। 

मित्रो आप कृपया इस ब्लॉग को पूरा ध्यान से पढ़ें , इसमें NTA एग्जाम के हिसाब से काम से काम 20 प्रश्नों के उत्तर हैं जो की पूरा वृतांत पढ़ने से आपको अच्छे से याद हो जायेंगे। 

 यहां ब्लॉग के बड़ा होने के कारण बस दो ही कलाकारों को ले रहे हैं अगले ब्लॉग में हम दूसरे कलाकारों पर भी चर्चा करेंगे यहाँ मैंने अपने पिछले ब्लॉग का लिंक भी दिया है अतः आप एक बार उसे भी पढ़ लें। 

👉क्या ये ब्लॉग किसी भी प्रकार से आपके लिए सहायक है या आपके सुझाव इस विषय में क्या हैं  … और आप आगे किन विषयों पर ब्लॉग पढ़ना चाहते हैं  … कृपया अपने महत्वपूर्ण सुझाव दीजिये 🙏


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