बंगाल स्कूल ऑफ आर्ट के प्रमुख चित्रकार भाग -2

 

बंगाल स्कूल ऑफ आर्ट के प्रमुख चित्रकार 

   भाग -2



नंदलाल बोस-

प्रसिद्ध चित्रकार एवं बंगाल स्कूल के प्रमुख कलाकारों में से एक - नंदलाल बोस का जन्म 3 दिसम्बर 1882 ई. में मुंगेर ज़िला, बिहार में हुआ था। नन्द लाल बोस की बचपन से ही कला में विशेष रूचि थी। उनकी रुचि आरंभ से ही चित्रकला की ओर थी। उन्हें यह प्रेरणा अपनी माँ क्षेत्रमणि देवी से मिट्टी के खिलौने आदि बनाते देखकर मिली। अंत में नंदलाल को कला विद्यालय में भर्ती कराया गया। इस प्रकार 5 वर्ष तक उन्होंने चित्रकला की विधिवत शिक्षा ली। उनके पिता पूर्णचंद्र बोस ऑर्किटेक्ट तथा महाराजा दरभंगा की रियासत के मैनेजर थे। 

बिहार में प्राथमिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद 15 साल की आयु में नंदलाल उच्च शिक्षा के लिए बंगाल गए। उस समय बिहार, बंगाल से अलग नहीं था। कला के प्रति बालसुलभ मन का कौतुक उन्हें जन्मभूमि पर ही पैदा हुआ। यहाँ के कुम्भकार ही उनके पहले गुरु थे। बाद में वे बंगाल स्कूल के छात्र बने और उन्होंने 1905 से 1910 के बीच कलकत्ता गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ़ आर्ट में अबनीन्द्ननाथ ठाकुर से कला की शिक्षा ली, इंडियन स्कूल ऑफ़ ओरियंटल आर्ट में अध्यापन किया और 1922 से 1951 तक शान्तिनिकेतन के कलाभवन के प्रधानाध्यापक रहे।

नंदलाल बोस को भारतीय संविधान की मूल प्रति को अपनी चित्रों से सजाने का मौका मिला। नंदलाल बोस की मुलाकात पं. नेहरू से शांति निकेतन में हुई और वहीं नेहरू जी ने नंदलाल को इस बात का आमंत्रण दिया कि वे भारतीय संविधान की मूल प्रति को अपनी चित्रकारी से सजाएं। 221 पेज के इस दस्तावेज के हर पन्नों पर तो चित्र बनाना संभव नहीं था। लिहाजा, नंदलाल जी ने संविधान के हर भाग की शुरुआत में 8-13 इंच के चित्र बनाए। संविधान में कुल 22 भाग हैं। इस तरह उन्हें भारतीय संविधान की इस मूल प्रति को अपने 22 चित्रों से सजाने का मौका मिला।

नंदलाल बोस की दृष्टि उनको महात्मा गांधी के बहुत निकट लाई। कहा जाता है कि महात्मा गांधी के संपर्क में आने के बाद नंदलाल बसु की कला में एक नया मोड़ आया। राष्ट्रीयता की भावना से ओतप्रोत बसु 'असहयोग आंदोलन', 'नमक-कर विरोध आंदोलन' आदि में सक्रिय भूमिका में थे। आज़ादी की लड़ाई के दौरान पारंपारिक और राष्ट्रीय अवधारणाओं के मेल से जो आधुनिक अवधारणाएँ संकल्पित हुई थीं, उनका प्रभाव तत्कालीन कलाकारों की कला में आ रहा था। हाशिए पर रख छोड़ी गई स्त्रियों की क्षमता और शक्ति को गांधी जी ने पहचाना और आज़ादी की लड़ाई में उसका सदुपयोग किया। नंदलाल बोस के हरिपुरा कांग्रेस अधिवेशन में बनाए एक विशेष पोस्टर श्रंखला में औरत की आध्यात्मिक शक्तियाँ चित्रित हुईं थीं।

उनके प्रमुख चित्र – शिव का विष पान , सती , दुर्गा , बुद्ध व मेष , अर्जुन , पार्थसारथी , यश व मेघ ,संथाल संथालिन , गाँधी जी की दांडी यात्रा आदि  हैं |

 उनके नाम से आज भी अधिकांश लोग अच्छी तरह वाकिफ हैं। इन्होंने अपनी चित्रकारी के माध्यम से आधुनिक आंदोलनों के विभिन्न स्वरूपों, सीमाओं और शैलियों को उकेरा, जिसे शांतिनिकेतन में बड़े पैमाने पर रखा गया। निस्संदेह नंदलाल बोस की चित्रकारी में एक अजीब सा जादू था जो किसी को भी बरबस अपनी ओर आकर्षित कर लेता था। उनकी चित्रकारी में ख़ूबसूरती की एक अमिट छाप दिखाई पड़ती थी। बोस की पेंटिंग तकनीक भी कमाल की थी जिसका कोई जवाब नहीं है। नंदलाल की पेंटिंग का एशिया में बहुत प्रभाव था। 16 अप्रैल 1966 कोलकाता में उनका देहांत हुआ।


 गगनेन्द्रनाथ टैगोर  -



अवनीन्द्रनाथ टैगोर के बड़े भाई और रविन्द्रनाथ टैगोर के भतीजे एवं बंगाल स्कूल के अन्य प्रमुख कलाकार - गगनेन्द्रनाथ टैगोर 17 सितम्बर, 1867, कलकत्ता, पश्चिम बंगाल में जन्मे।  वे  प्रसिद्ध भारतीय व्यंग्य चित्रकार (कार्टूनिस्ट) थे। गगनेन्द्रनाथ टैगोर  भारत के आधुनिक कलाकारों में अग्रणी थे। उन्होंने भारतीय चित्रकला की महफिल में विदेशी रंग भरकर उसे घर-घर में परिचित करवाया। गगनेन्द्रनाथ भारतीय कार्टून जगत् के अग्रदूतों में एक थे। उनके परिवार की सृजनशीलता ने पूरे बंगाल की कला संस्कृति को नया रूप मिला । देखा जाए तो गगनेन्द्रनाथ ने किसी प्रकार की स्कूली शिक्षा नहीं ली थी और न ही उन्होंने किसी गुणी-ज्ञानी जैसी पढ़ाई की, लेकिन जलछविकार हरिनारायण बंदोपाध्याय से उन्हें प्रशिक्षण मिला। इसके बाद वे कला में परिपक्व होते गए।



सन 1907 में अपने भाई अवनींद्रनाथ के साथ मिल कर गगनेन्द्रनाथ टैगोर ने 'इंडियन सोसाइटी ऑफ़ ओरियंटल आर्ट' की स्थापना की। इसके बाद उनकी एक पत्रिका 'रूपम' प्रकाशित हुई, जो लोगों को अच्छी लगी। 1906 से 1910 के बीच गगनेन्द्रनाथ टैगोर ने जापानी ब्रश तकनीक व अपने काम में सुदूर पूर्वी कला के प्रभाव का अध्ययन किया। कुछ सीखने की जिज्ञासा ने उन्हें विशेष ज्ञान दिलाया। विश्व कवि रविन्द्रनाथ टैगोर की जीवनी 'जीवनस्मृति' से उनके कुछ कर दिखाने की जिद व सीखने की चाह ने उन्हें शिखर पर पहुंचा दिया। इसके बाद गगनेन्द्रनाथ टैगोर ने अपनी दिशा बदल ली और व्यंग्यात्मक संसार की ओर कदम बढ़ा दिया।

 पंजाब के दर्दनाक जलियांवाला बाग़ के कांड पर आधारित उनकी कार्टून 'पीस रिस्टोर्ड इन पंजाब' (पंजाब में अमन की वापसी) एक कार्टून कलाकार का अतुल्य साहस था और यह समाज पर हो रहे अत्याचार को बरदाश्त न करने के भाव की दर्शकों पर छाप छोड़ता है । इसके अतिरिक्त गगनेन्द्रनाथ टैगोर की कार्टून सीरीज 'दी स्ट्रीम' मील का पत्थर है। इसके अलावा उन्होंने कुछ राजनीतिक व्यंग्य चित्र भी बनाए, हालांकि उनकी सामाजिक व्यंग्य में इतनी सच्चाई होती थी कि व्यंग्य के तीरों से कोई भी अन्यायी-अत्याचारी घायल हो जाता था। इसके अतिरिक्त उनका किताब एवं नाट्यशाला' के साथ  रिश्ता बहुत ही गहरा एवं बेहद अटूट था। बच्चों के लिए उनके मन में अपार स्नेह था।उन्होंने बच्चों के लिए 'वोंदर बाहादुर' नामक पुस्तक की रचना भी की थी । गगनेन्द्रनाथ टैगोर का निधन 1938 में पक्षाघात के कारण हुआ था ।

 यहां ब्लॉग के बड़ा होने के कारण बस दो ही कलाकारों को ले रहे हैं अगले ब्लॉग में हम दूसरे कलाकारों पर भी चर्चा करेंगे यहाँ मैंने अपने पिछले ब्लॉग का लिंक भी दिया है अतः आप एक बार उसे भी पढ़ लें। 

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