भारतीय प्रागैतिहासिक काल


भारतीय प्रागैतिहासिक काल

सरल शब्दों में प्रागैतिहासिक का अर्थ है कि इतिहास से पूर्व का समय। प्रागैतिहासिक कला में इतिहास से पूर्व के औजार , शैलचित्र या शैलोत्कीर्ण और धातु, हाथी दाँत एवं पथ्थर से बनी मूर्तियां , गहने एवं घरेलु काम के अन्य सामान आदि सम्मिलित हैं।  

प्रागैतिहासिक काल को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है -

१-पुरापाषाण काल (Paleolithic Era) 

२- मध्यपाषाण काल (Mesolithic Era)

३- नवपाषाण काल (Neolithic Era)

कहीं कहीं ताम्र युग (Chalcolithic Era) को भिन्न रूप से या कहीं कहीं नवपाषाण के हिस्से के रूप में भी व्यक्त किया जाता है। 


१-पुरापाषाण काल (Paleolithic Era)-






* भारत में पुरापाषाण युग ३00,000 ईसा पूर्व – ८000 ईसा पूर्व का  माना जाता है। 

* भारत में पुरापाषाण काल हिमयुग में विकसित हुआ।

* भारत में मानव अस्तित्व के शुरुआती निशान ३00,000 ईसा पूर्व थे।

* इस युग के लोग मुख्यतः शिकार पर निर्भर रहते थे और जंगली फलों और सब्जियों का करते थे  क्यों कि इस युग में कृषि का विकास नहीं हुआ था। 

* इस अवधि के दौरान मनुष्य खुरदरे पत्थरों के उपकरणों का इस्तेमाल किया करता था और गुफाओं में रहा करता था। 

* पुरापाषाण स्थल  के अवशेष भारत के कई हिस्सों में फैले हुए हैं। 

* होमो सेपियन्स पहली बार इस चरण के अंतिम समय में दिखाई दिए। यह बताया गया है कि पैलियोलिथिक पुरुष नेग्रिटो जाति के थे।

* इस पुरापाषाण काल को भी तीन भागों में विभाजित किया जाता है - प्रारंभिक या निम्न पुरापाषाण, मध्य पुरापाषाण काल और उत्तर पुरापाषाण काल। 

* प्रारंभिक पुरापाषाण चरण में हिम युग का बड़ा हिस्सा शामिल है। इसके विशिष्ट उपकरण हाथ की कुल्हाड़ियों और चॉपर्स हैं। ऐसे उपकरण सोहन नदी घाटी  (पाकिस्तान में) और यूपी के मिर्जापुर जिले में बेलन घाटी में पाए गए हैं। 

* मध्य पुरापाषाण चरण में  पत्थर के औजारों के उपयोग की विशेषता है जो मुख्य रूप से स्क्रैपर्स और खुरदरे लेकिन धारवाले  उपकरण हैं। यहसोहन, नर्मदा और तुंगभद्रा नदियों की घाटियों में पाए जाते हैं।

* उत्तर पुरापाषाण काल के औजार  थोड़े और परिष्कृत दिखाई देते हैं जोकि आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, भोपाल और छोटा नागपुर पठार में पाए गए हैं।

२- मध्यपाषाण काल (Mesolithic Era)-



*  पुरापाषाण काल और नवपाषाण काल मे मध्य मे आता है।

* इतिहासकार इस काल को १२,००० साल पूर्व से लेकर १०,००० साल पूर्व तक मानते है। 

* तापमान में बदलाव कारण गर्मी बढ़ी और जौ, गेहूँ, धान जैसी फसलें उगने लगीं।

* मध्य पाषाण युग में लोग मुख्य रूप से पशुपालक थे। मनुष्यों ने इन पशुओं को चारा खिलाकर पालतू बनाया। 

* इस युग में मनुष्य खेती के साथ-साथ शहद जमा करना, शिकार करना आदि कार्य करना सीख गया था। 

* पुरातत्त्वविदों को पश्चिम, मध्य भारत और कर्नाटक के मैसूर  में इस युग की कई गुफाएँ मिलीं हैं।

३- नवपाषाण काल (Neolithic Era)-

* भारत में ४,000 ई.पू. से यह यह शुरू हुआ और संभवतः २५00 ई.पू. तक चलता रहा।  

* इस युग में वह भोजन का उत्पादक हो गया था अर्थात् इस युग में मनुष्य कृषि पद्धति का अच्छा ज्ञान हो गया। 

* यह पाषाणयुग की तीसरी और अंतिम कड़ी है।  

* इस युग में मनुष्य का मस्तिष्क अधिक विकसित हो चुका था।   

* उनके बौद्धिक विकास और  अनुभव का परिचायक इस युग के हथियार हैं जिसमें  मनुष्य ने काफी सुधार कर लिया था। 

* दक्षिण भारत और पूर्व भारत में अनेक स्थलों पर इस संस्कृति के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं। दक्षिण भारत में गोदावरी नदी के दक्षिण में ये साक्ष्य मिले हैं।  

* पूर्वी भारत में गंगा, सोन, गंडक और घाघरा नदियों के डेल्टाओं में मानव रहता था।  

* इस युग में मनुष्य कृषिकार्य के कारण एक स्थान पर स्थाई रूप से रहना शुरू कर दिया।  

* कहीं-कहीं पर झोपड़ियों और घरों के अवशेष मिले हैं। और कहीं- कहीं पर गड्ढे को घर बनाकर रहने के साक्ष्य मिले हैं।   ऐसे घर को गर्तवास का नाम दिया गया। 

* मेहरगढ़ में कई घरों के अवशेष मिले हैं, जो चौकोर और आयतकार हैं। 

* नवपाषाण काल  में जनजातियों की अपनी संस्कृति और परम्पराएँ होती थीं।  भाषा, संगीत, चित्रकारी आदि से इनकी संस्कृति का ज्ञान होता है। 

* इस काल में लोग जल, सूर्य, आकाश, पृथ्वी, गाय और सर्प की पूजा विशेष रूप से करते थे। 

* इस काल में बने मिट्टी के बरतन कई स्थलों से प्राप्त हुए हैं।  जिन पर ज्यामितीय चित्रकारी की गई है।  

* विशेष रूप से औजार का चिकना होना एवं पॉलिश इस युग की पहचान मानी जाती है। 

इस प्रकार संक्षेप में हमने इस युग के बारे में जाना। अगले ब्लॉग में हम विविध क्षेत्रों में प्राप्त गुफाओं, शैलचित्रों और कला से सम्बंधित अन्य वस्तुओं के बारे में चर्चा करेंगे। 

👉क्या ये ब्लॉग किसी भी प्रकार से आपके लिए सहायक है या आपके सुझाव इस विषय में क्या हैं  … और आप आगे किन विषयों पर ब्लॉग पढ़ना चाहते हैं  … कृपया अपने महत्वपूर्ण सुझाव दीजिये 🙏

Comments

search this blog

षडंग (six limbs): चित्रकला का आधार

पाल चित्रकला शैली

विष्णुधर्मोत्तर पुराण और कला

जैनशैली/अपभ्रंश शैली

पहाड़ी शैली

राजस्थानी शैली/राजपूत शैली